नाहन (शैलेंद्र कालरा) : महज 27 साल की उम्र में बबीता शर्मा का डयूटी के प्रति समर्पण हैरान कर देने वाला है। शायद ही कोई विश्वास करे, लेकिन हकीकत है कि चूड़धार चोटी के 46,800 बीघा वन्यप्राणी क्षेत्र की बबीता बेखौफ सुरक्षा करती है। एक कदम पर भालू-तेंदुए के हमले का खतरा होता है तो दूसरे कदम पर लकड़ी के तस्कर, वहीं तीसरे कदम पर जड़ी-बूटियों के तस्करों से कब आमना-सामना हो जाए, खुद बबीता को नहीं पता होता।
इस बात को भी बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि वनरक्षक के पद पर तैनात इस समय चोटी पर तस्करों के साथ-साथ वन्यप्राणियों के शिकारियों के लिए बबीता खौफ बन चुकी है। चीते की तरह फुर्तीली बबीबा कब, कहां आ धमके, इसका खौफ तस्करों की आंखों में हर वक्त तैरता है। कई मर्तबा ट्रांसगिरि क्षेत्र के टिटियाना की रहने वाली बबीता दो-तीन दिन जंगलों में ही रात गुजारती है।
विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन खुद बबीता की जुबानी है कि जंगलों में रात बिताने के दौरान भालुओं का सामना तो हुआ ही, साथ ही एक मर्तबा जड़ी-बूटियों के तस्करों से भी सामना हुआ। विभाग ने बबीता को छोगटाली व नौहरा बीट की जिम्मेदारी दी है, लेकिन साथ सटी शिमला जिला की बीटस में भी हलचल होने पर चौकन्नी हो जाती है। एक मार्च 2016 को इस इलाके की कमान बतौर फोरैस्ट गार्ड संभाली थी, तब से डयूटी के लिए खुद को समर्पित कर दिया।
एमबीएम न्यूज से बातचीत में बबीता ने कहा कि डयूटी ज्वाइन करते ही सौगंध ली थी कि वन संपदा व वन्यप्राणियों की रक्षा के लिए जीवन समर्पित करेंगी। नौहराधार रेंज के अंतर्गत कार्यरत बबीता कहती है कि हमेशा ही वन तस्करों के निशाने पर रहती है। कहना है कि इन दिनों सतुवा जड़ी-बूटी चोटी पर मौजूद है। इसकी तस्करी को रोकना फिलहाल चुनौती है। खुद मानती हैं कि कई रातें जंगलों में बिताई हैं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
दो अक्तूबर 1988 को जन्मी बबीता शर्मा चार भाईयों की इकलौती बहन है। एक भाई आयुर्वैदिक विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है, दूसरा भाई भारतीय सेना में इस वक्त 72 डोगरा में उरी में तैनात है। तीसरा भी वन विभाग में फोरैस्ट गार्ड के पद पर तैनात है। चौथा भाई प्रतियोगितात्मक परीक्षा की तैयारी में लगा है। पिता उदयराम शर्मा व मां रुकमणी देवी ने दिहाड़ी कर व घी बेच कर बच्चों को काबिल बनाया।
पढि़ए, बबीता की डयूटी से जुड़े कुछ खास पहलू।
- हर रोज करीब 30 से 40 किलोमीटर जंगलों की खाक छानती है।
- इलाका जड़ी-बूटी की तस्करी के लिए भी संवेदनशील है। 20 अगस्त को तस्करों का सामना भी हुआ।
- 22 अगस्त को बैरोग के नजदीक शिकारियों से आमना-सामना हो गया, जिन्हें खदेडऩे में कामयाबी हासिल की।
- हाल ही में 20 सितंबर को मादा भालू सामने थी, जिसके साथ कुछ दिन पहले पैदा हुए बच्चे भी थे। सोचिए, मादा कितनी खतरनाक हो सकती थी।
- घाटी में चार ऐसे प्वाइंटस हैं, जहां वन काटू चंद मिनटों में ही कुल्हाड़ी चला देते हैं। उच्च तकनीक से पेड़ों को काट दिया जाता है, जिन्हें राजगढ़ के पैनकुफर क्षेत्र के माध्यम से सडक़ तक पहुंचाया जाता है।