मंडी(वी कुमार): बिंद्रावणी सडक़ हादसे के जख्म हरे हैं। लेकिन इस हादसे ने मां की ममता की एक ऐसी तस्वीर पेश की है, जो हर किसी को आश्चर्यचकित कर सकती है। दिल के टुकड़ों को जान पर खेल कर मां कैसे बचाती है, हादसे ने दिखाया है। 25 साल की मेनका देवी की बहादुरी इस वक्त पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। मां उस अभागी बस में अपनी चार वर्षीय बेटी वंशिका व 10 माह के बेटे ललित के साथ घर लौट रही थी।
हादसे के दौरान मेनका के दोनों बच्चे ब्यास नदी में जा गिरे। खुद सीट में फंस गई। लहुलूहान हालत में मेनका ने हिम्मत नहीं हारी। पहले पानी में कूद कर पहले बेटी को बचाया, फिर कपड़ों व प्लास्टिक के एक बैग में 10 महीने के बेटे को पानी से बाहर निकाल लाई। यानि मौत के मुंह से अपने दिल के टुकड़ों को छीनकर वापस ले आई। बच्चों को सुरक्षित नदी के किनारे पहुंचाने के बाद खुद अचेत हो गई।
अस्पताल में जब मेनका को होश आया तो पहला सवाल यही था, मेरे दोनों बच्चे कहां है, उन्हें तो मैंने पानी से निकाल लिया था। हर कोई मेनका देवी के हौंसले व ममता को देखकर आश्चर्यचकित था। अस्पताल में उस वक्त माहौल बेहद भावुक हो उठा, जो पंडोह के हरीश कुमार ने अपनी गोद से मेनका की बेटी वंशिका को मां की गोद दी। खुद घायल होने के बावजूद मेनका ने अपनी बच्ची को पुचकारना शुरू कर दिया तो हर किसी की आंखें नम हो उठी।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क का मानना है कि मां के दूध का कर्ज तो बच्चे नहीं चुका सकते हैं, लेकिन मां का बच्चों के प्रति कितना गहरा स्नेह होता है, इससे सबक लेना चाहिए कि जब मां-बाप को जीवन की दहलीज पर बच्चों की जरूरत हो तो साथ न छोडें।