शिमला (रेनू कश्यप) : एक साल के भीतर उमंग फाऊंडेशन ने बेघर-बेसहारा बुजुर्गों के जीवन की रक्षा की है। लिहाजा खड़े होकर सेल्यूट बनता है। अपने अभियान ‘ठंड से कोई जान न जाए’ के दौरान एक साल के भीतर 6 बुजुर्गों को बसंतपुर स्थित वृद्धाश्रम भिजवाने की व्यवस्था की गई। इनमें से कुछ ठीक से बोल भी नहीं पाते हैं तो कुछ सुन नहीं पाते हैं।
एक बेबस व लाचार बुर्जुग के साथ फाऊंडेशन के संस्थापक अजय श्रीवास्तव, इनसैट में अन्य।सोचिए, अगर उमंग फाऊंडेशन को आशीर्वाद दे रहे होंगे तो शायद सब बुजुर्ग फाऊंडेशन के सूत्रधार को कह रहे होंगे, हमारी उम्र तुमको लग जाए। इसके लिए फाऊंडेशन को बकायदा संघर्ष भी करना पड़ा। इन बुजुर्गों में कश्मीर के 82 वर्षीय ओम प्रकाश, 60 साल की मूक-बधिर गंगा देवी, बंगाल की रहने वाली 70 वर्षीय मनोरोगी शेख शमीम, 74 वर्षीय हनुमान दास, मूक-बधिर नेपाली दंपत्ति जो नाम भी नहीं बता पाते व गंभीर मनोरोगी लीलाधर शामिल हैं।
समाज के अनजान लोगों ने बुजुर्गों को भीषण ठंड से बचाने के लिए उमंग फाऊंडेशन को संपर्क किया था। फाऊंडेशन ने बेघर बुजुर्ग या बेघर महिला को बेबस हालत में देखने पर उन्हें भाग्य भरोसे न छोडऩे का आग्रह किया है। साथ ही भाषा व प्रांत की संकीर्ण भावना को भी आड़े न आने देने की अपील की है। फाऊंडेशन ने मोबाइल नंबर 98160-77535 व व्हाटस एप नंबर 94180-08595 पर संपर्क करने की भी बात कही है। फाऊंडेशन के लगातार प्रयासों से हिमाचल का एकमात्र सरकारी वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की जिंदगी में जबरदस्त बदलाव आया है।
बुजुर्ग दंपत्ति एवं एक अन्य बुजुर्ग महिला।बेबस-लाचार-विकलांग-बीमार बुजुर्गों के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए 2012 में संघर्ष शुरू किया था। उस वक्त सरकार की नौकरशाही की अकड़ ने भी फाऊंडेशन की हिम्मत को नहीं तोड़ा। मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के आदेश हुए। विधानसभा में मुद्दा उठा। दो बार हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई। हाईकोर्ट ने 4 जून 2016 तक वृद्धाश्रम का निर्माण पूरा करने के आदेश दिए। 13 मई 2016 को आधुनिक वृद्धाश्रम बनकर तैयार हो गया।
फाऊंडेशन के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि रविवार को अपनी बेटी विपाशा के साथ इस आश्रम में एक दिन बुजुर्गों के साथ गुजारा तो अपार संतोष मिला। उन्होंने कहा कि इन बेबस व लाचार बुजुर्गों में हमेशा अपने माता-पिता को महसूस किया। यही उनकी प्रेरणा रही।