हमीरपुर (एमबीएम न्यूज) : उत्तरी भारत के विश्वविख्यात सिद्धपीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में महंत परम्परा एवं गुरू गद्दी का इतिहास उतना ही पुराना है । इतना कि बाबा जी के गुफा में प्रकट होने का। तभी से गुरू शिष्य की परम्परा चली आ रही है। किवंदतियों के मुताबिक श्रद्धालु इस प्राचीन गद्दी के महंत को बाबा का दूसरा रूप मानते हैं।
कहते हैं, श्रद्धालु यात्रा को तभी सफल मानते हैं, जब गुफा के बाद महंत के दर्शन किए जाएं। बाबा की गुफा के दर्शन करने के उपरांत महंत के दर्शन करने का यही विशेष महत्व है। दियोटसिद्ध में चैत्र मास की संक्रांति से शुरू होने वाले मेले में बाबा की गुफा के दर्शनों के साथ-साथ महंत के अनुयायियों में भी आस्थाओं का जनून सिर चढ़कर बोलता है। वर्तमान में महंत 1008 राजेंद्र गिरि महाराज इस प्राचीन गद्दी के तेहरवें महंत हैं।
पूर्व में इस बाबा बालक नाथ मंदिर की व्यवस्था का जिम्मा बाबा के अन्नय भक्त बनारसी दास के वशंज स्थानीय चकमोह निवासी व गिर संप्रदाय से जुड़े साधुओं के हाथ में था। बाद में गिर संप्रदाय से जुड़े साधू इस मंदिर के महंत कहलाए व स्थानीय चकमोह निवासियों को पुजारियों में शुमार किया गया। 16 जनवरी, वर्ष 1987 को प्रदेश सरकार ने इस मंदिर का अधिग्रहण कर यहां एक ट्रस्ट का गठन किया। तब से मंदिर की व्यवस्था का जिम्मा ट्रस्ट के अधीन है।
क्षेत्र के विकास में प्राचीन गद्दी के महंतों का योगदान कम नहीं है। क्षेत्र में विकास का अलख जगाने वाले ब्रहा्रमलीन महंत शिवगिरि जी महाराज भले ही आज इस संसार में नहीं हैं लेकिन वे आज भी समाज के लोगों के लिए प्रेरणा का सत्रोत हैं। महंत शिवगिरि ने वर्ष 1982 में विकास का नया अध्याय लिखा तथा क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को स्नातक की पढ़ाई के लिए उन्होंने कॉलेज की स्थापना की, वहीं वर्ष 1985 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार से उन्होंने चकमोह में 100 विस्तर के अस्पताल की नींव रखवाई थी।
इससे पहले उन्होंने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लंगर, बिजली व पानी की सुविधा भी मुहैया करवाई। महंतों द्वारा समाज के प्रति विकास का नजरिया क्षेत्र के लोगों, अनुयायियों व भक्तों के जहन में आज भी यादें ताजा करता है। हालांकि वर्तमान में प्राचीन गद्दी के 13वें महंत 1008 राजेंद्र गिरि जी महाराज अपने गुरू ब्रह्मलीन महंत शिविगिरि जी के पद चिन्हों पर चलते हुए उनके सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह प्रयासरत हैं लेकिन बिडंवना यह है कि दियोटसिद्ध मंदिर न्यास करोड़ों रूपये की आमदनी के बावजूद महंत शिवगिरि के सपनों को आज भी साकार नहीं कर पाया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
मंदिर ट्रस्ट में मंहत को उपाध्यक्ष पद से नवाजा जाता था । परंतु मंदिर न्यास प्रशासन ने इस पद को निरस्त कर दिया गया। वहीं स्थानीय लोगों व अनुयायियों को महंत की इस उपेक्षा पर गहरा मलाल है।