नाहन (एमबीएम न्यूज): कहते हैं, दिव्यांग बच्चों को कुदरत हुनर से नवाजती है। अगर दिव्यांग बच्चों में हुनर को तराशने का माहित मिल जाएं तो बच्चें अंतरराष्ट्रीय स्तर तक माता-पिता का नाम रोशन कर सकते हैं। शहर में दो दशक पहले आभा वर्मा ने यहीं बात सोची कि क्यों न इन बच्चों के हुनर को तराशा जाएं। तब से आज तक आभा अपना पूरा जीवन इसी कार्य में न्यौछावर कर रही है। खुद बताती हैं, 1996 में घर जाते वक्त एक दिव्यांग बच्चा मिल गया। उसी क्षण आभा ने इस तरह के बच्चों को संवारने का मन बना लिया।
धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए आभा ने पाया कि दिव्यांग बच्चों में एक खास तरह का हुनर छिपा होता है। इसके बाद आभा वर्मा ने शहर के कुछ लोगों के साथ मिलकर आस्था वेलफेयर सोसायटी बनाई। दिव्यांग बच्चों के लिए शहर में एक स्कूल खुल गया। इस वक्त आस्था स्पेशल स्कूल में तकरीबन 60 दिव्यांग पढाई कर रहे हैं। इनमें से 12 बच्चें अनाथ है। 20 सदस्यीय स्टाफ अवैतनिक है। इस स्कूल के 21 बच्चें होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी कर चुके हैं। 12 अनाथ बच्चों को प्रतिमाह 4500 रुपए की मदद सरकार भी देती है।
दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में आस्था स्पैशल स्कूल आज राष्ट्रीय मानचित्र पर आ चुका है। हाल ही में इस स्कूल ने डिप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन शुरू किया है। खास बात यह है कि इस कोर्स को करने वाले सामान्य छात्रों को स्पैशल एजुकेटर बनने का भी मौका मिल सकता है। स्कूल की प्रधानाचार्य रूचि कोटिया का कहना है कि दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरीके अपनाए गए है। इसमें लिफाफे बनाने के अलावा दिवाली के दौरान दीये साथ ही ग्रीटिंग कार्ड इत्यादि शामिल हैं।
शहर में आभा वर्मा की इस अनुकरणीय सेवा से हर कोई वाकिफ है।