घुमारवीं (सुभाष कुमार गौतम) : हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में राष्ट्रीय उच्च मार्ग शिमला -धर्मशाला 103 पर बना कदरौर पुल अब “Death Bridge” के नाम से नहीं जाना जाता है।
रोमांचक बात है कि भाखड़ा बांध को सतलुज नदी पर बनाए जाने के बाद गोविंद सागर झील बन गई थी, जिसके कारण यह पुल बनाना आवश्यक समझा गया। यह पुल एशिया का सबसे ऊंचा पुल हैं, जिसकी ऊंचाई 80 मी व लंबाई 280 मी है। पुल का नजारा इस कदर नजर आता है कि मानो आप स्वर्ग में हों लेकिन बहुत सारे लोगों ने इस पुल को बदनाम करके रख दिया।
माना जाता है कि जब से यह पुल बना इस पर मरने बालों की संख्या बढने लगी और दिन प्रति दिन बढ़ रही घटनाओं से प्रशासन भी परेशान होने लगा पुलिस द्वारा सी सी टी बी कैमरे लगाए गए, ताकि इस पुल पर से छलाँग देकर मरने बालों का पता लगाया जा सके। लेकिन मरने बालों की संख्या में कोई कमी नही आई कोई एेसा समाधान नहीं निकल रहा था कि जिससे इन बारदातों पर नियंत्रण पाया जा सकता ।
हाल ही में चार साल पूर्व हुए सरकारी स्कूलो की साईस इंसपायर कार्यक्रम में एक बच्ची ने इस पुल पर हो रही मौतो को लेकर उनके रोकने के लिए इस पुल के लिए एक एक मॉडल भी तैयार किया, जिसमें पुल के दोनों तरफ चार -चार फीट ऊंची जाली लगाई गई थी। बच्ची द्वारा पेश किया गया यह पुल का माडल अधिकारियों को पसंद अाया और जिसके लिए नन्ही वैज्ञानिक वैस्ट अबार्ड दिया गया और इस पर कार्य शुरु किया गया। इस बारे में नेशनल हाई वे के अधिकारियों द्वारा दोनों तरफ जाली लगाने की प्रपोजल को नेशनल हाई वे ऑफ अथार्टी को भेजा गया जिसकी स्वीकृति मिलने के बाद इस पुल पर लाखों रूपएे खर्च करने के बाद जाली लगा दी गई। तब से लेकर इस पुल पर से किसी ने कोई छलांग नहीं लगाई और न कोई मौत हुई। इस बारे में एसपी बिलासपुर राहुल नाथ का कहना है कि जाली लगने के कारण कंदरौर पुल पर घटित होने वाली मौत की घटनाओं पर पूर्णतः रोक लग गयी है।