जंजैहली (लीलाधर चौहान): सराज क्षेत्र में सायर के पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है। बुजुर्गो से आर्शीवाद लेने के लिए गांव के बच्चे प्रत्येक घर में जाकर अपने से बडों को दुर्ब देकर पांव छू लेते है और बदले में उनसे आर्शीवाद के साथ अखरोट भी मांगते है तो बुजुर्ग सदा रोग मुक्त व खुशी रहने का आशीर्वाद अपने से छोटे को देते है तथा अखरोट के साथ पैसे भी देते है।
सायर मनाने की खासियत
सराज क्षेत्र के बुद्धिजीवी बुजुर्गो का कहना है कि सदियों पहले सराज घाटी में बरसात का मौसम बहुत ही खतरनाक होता था जो आजकल नहीं है कि उस बरसात के कहर में कई लोगों की जाने चली जाती थी। जब बरसात का मौसम समाप्त हो जाता था तो घाटी के लोग खुशी मनाते थे कि अब जो बच गया है, उसे हरी दुर्ब देकर गले लगा लेते है जो परम्परा आज तक चली आ रही है। बेटियां अपने माता-पिता और सभी रिश्तेदारों से मिलने के लिए इस दिन का बेसब्री से इन्तजार करती रहती है।
इस दिन मां-बाप अपनी बेटियों को दान के रूप में कई चीजे देते है और बेटियों के स्वागत के लिए अच्छे भोजन जैसे हरी धनिया और हरी राजमाह की खिचडी के साथ देसी घी और अखरोट की चटटनी, हरी मक्की को भूनकर साथ में अखरोट का मजा, भल्ले पुरियां, हरी राजमाह के साथ हरी मक्की के जाम्बले का मजा जैसी खाने की सामग्री बनाई होती है। हरी दुर्ब देने का महत्व माना जाता है कि एक तो हम बरसात से बच गए तो दूसरा हमेशा हम सभी रोग मुक्त व खुश रहे तथा कोई बाहर का दुश्मन उन्हे टुकडों में बांट न सके ।
एक सप्ताह तक मनाई जाता है यह पर्व
सराज क्षेत्र में यह पर्व लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है कि बेटियां व अन्य रिश्तेदारों का आना जाना चला रहता है। खाने में राजमाह की खीचडी के साथ देसी घी, भूनी हुई मक्की को अखरोट के साथ खाने का मजा ही कुछ गजब का होता है तथा इसके अलावा चन्ने, जांवले इत्यादि विशेष आहार होते हैं।
शोक में नहीं मनाया जाता सायर पर्व
आपको बता दें कि जिस गांव में किसी तरह की घटना घटी हो यानि शोक में कोई गांव पडा हो तो सायर का पर्व उस गांव में नहीं मनाया जाता।
अखरोट ले लेते जान
आपको यह बात अटपटी सी लग रही होगी कि आखिर किस तरह अखरोट जान ले सकता है मगर यह सच है कि इसी पर्व को मनाने के लिए उपमंडल जंजैहली के शिकावरी पंचायत के गांव गुनास के एक स्वस्थ व्यक्ति मानदास चैहान अपने अखरोट के पेड से अखरोट निकाल रहा था कि जैसे ही वह पेड के टाॅप पर पहुॅंचे तो उनका पांव फिसल गया आखिर अपनी जान ही गवा बैठे। अखरोट का पेड बहुत बडा होता है कि इन्हें निकालने के लिए एक लम्बी छडी का प्रयोग किया जाता है।