रिकांगपिओ (जीता सिह नेगी) : जिला में इन दिनों फूलों का पारंपरिक त्यौहार उख्याड धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस मेले को मनाने का जिला के प्रत्येक गांव में अपना रिवाज है। करीब चार दिनों तक चलने वाले मेले की तैयारी कई दिन पूर्व से की जाती है। उख्याड मेले के पहले दिन गांव के लोग पहाड की चोटी पर जाते है। अगले दिन वापिस आ कर अपने देवता को मंदिर प्रागंण मे निकाल कर लोकनृत्य व किन्नौरी नाटी लगाते है। बच्चे – बूढे हो या युवक पारम्परिक किन्नौरी वेशभूषा मे मेले का आन्नद लेते है। लोग पहाड की ऊंची चोटी से फूल लाते है जिसे अपने घरो व रिश्तेदारों को तोहफे के रूप मे देते है।
बीस भादो से शुरू हुआ उख्याड.
पूह उपमडंल के रोपा वेली के रोपा, रूशक लंग, ज्ञाबुंग, सुन्नम गांव का उख्याड. मेले बीस भादो से शुरू हो जाता है। चार दिनो तक चलने वाले इस मेले में पूर्वजो के आत्म शांति के लिए पहाड के ऊंची चोटी पर पूर्जा अर्चना भी करते है। रूशक लंग व ज्ञाबुंग के लोग इसे मेन्थोको कहते है। मेन्थो यानि फूलो का त्योहार। इन दोनो गांव का आपस में नाते रिश्ते भी है। आज भी दोनो गांव एक साथ पहाड की ऊची चोटी जोर – जोरा नामक स्थान पर मिलते है व पूरी रात व अगले दिन तक नाटी लगाते है व एक दूसरे को मेले की शुभकामनाएं भी देते है।
उख्याड मेले लडते थे दो गुट
उख्याड मेले को मनाने का रूशकंलग व ज्ञाबुंग के ग्रामीणो का मनाने का अपना ही अलग रिवाज है। बताते है कि रूशक लंग व ज्ञाबुगं गांव दोनो एक ही पंचायत के तहत आते है। मगर पूर्व में यह दोनो गांव के लोग इकटठे होकर मेले में पहाड की ऊंची चोटी जोरजोरा नामक स्थान पर जा कर लडते थे। खून खराबा तक होता था मगर सुबह सब कूछ भूल कर एक दूसरे से गले मिलते थे। बुजुर्गो का कहना है कि बीस भादो को दोनो गांव के लोग बच्चे, महिला, युवक सभी तैयार हो कर अपने – अपने गांव से चोटी की ओर चढते थे। एक निश्चित स्थान पर दोनो गांव के लोगों का मिलना होता है। एक दूसरे से मिलने के साथ नाटियों का दौर चलता था । इस बीच नाटी व नृत्य के समय दोनो गांव के लोग आपस में भिड जाते थे।
नतीजन नौबत लडाई तक पहुंच जाती थी दोनो गांव के लोगो कई सालो तक इस परंपरा को निभाते रहे है। लेकिन अब बदलते परिवेश के साथ दोनो गांव के ग्रामीण मेले को एक साथ मनाते तो है मगर लडाई नही करते। बताते है कि मेले मेें लडने का सिलसिला कई वर्षो तक चला मगर हाल ही के सालो सें लडाई की प्रथा को खत्म कर दिया अब इस मेले को दोनो गांव हर्षोल्लास के साथ मनाते है। व आपस में दोस्ती व रिश्ते का मिसाल भी पेश करते है। लोगो का कहना है कि दो गांव एक साथ चोटी पर मिल कर इस तरह मेेले को संयुक्त रूप से मनाने का यह रिवाज कही नही है।