मंडी ( वी कुमार ): सराज घाटी के आराध्य देवता बिठ्ठू नारायण 12 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद कला संग्रह के लिए कुल्लू के सबसे दुर्गम क्षेत्र शाक्टी पहुंचे और वहां देवता ने अठाहरा करडू के कचहरी स्थल में हाजरी भरकर कला संग्रह (शक्तियां अर्जित करना) किया।
यह स्थल करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ग्रेट हिमालय नैशनल पार्क क्षेत्र में पड़ता है। जहां पहुंचने के लिए देवता के रथ ने थाची से करीब 100 कि.मी. का सफर अपने कारकूनों के कंधों पर सवार होकर किया और वापस भी सैंकड़ों देवलुओं के साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर पैदल अपने देवालय 10 दिन बाद पहुंचे। खास बात यह रही कि गांव में देवता के वापस पहुंचे पर बटवाड़ा गांव की ब्राह्मण परिवार की महिलाओं ने उनका धूप और फूलमालाओं से स्वागत किया,जो सबसे रोचक और ऐतिहासिक पल था।
भीगी पलकों से बुजुर्ग महिलाओं ने अपने आराध्य देवता बिठ्ठू नारायण का स्वागत किया और प्राचीन रस्मो को निभाने के लिए गांव की तमाम महिलाओं ने नंगे पैर पैदल उल्टे चलकर करीब 2 कि.मी. का कांटों भरा रास्ता तय किया जो एक प्राचीन परम्परा है। देवता के प्रमुख पुजारी ओत राम शर्मा का कहना है कि यह दौरा 12 वर्ष बाद देवता के आदेश पर निकला है।
ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में यहां 12 परिवारों के 240 सदस्य रहते थे जो देव स्थल की पवित्रता बरकरार नहीं रख सके तो स्थानीय देवता बिठ्ठ ने इनका एक साथ समूल नाश कर दिया था और एक मात्र महिला बच गई थी जो नियमों का पूरा पालन करती थी। इस महिला के आगे देव कृपा से फिर कुनबा बढ़ा और यहां फिर से प्रलय के बाद जीवन शुरू हो गया।
उसी परिवार सबसे बजुर्ग महिला से मिलने देवता बिठ्ठू नारायण स्वयं यहां पहुंचते हैं। इस बार भी 12 वर्ष पूर्व इसी महिला शाहढ़ी देवी को दिए वचन को पूरा करने के लिए देवता गांव पहुंचे थे और अपनी पुरातन रस्में देवता बिठ्ठ (ब्रह्मा) की उपस्थिति में पूरी की।