राजगढ़ (एमबीएम न्यूज़): एक-एक इंच जमीन पर भी मुकद्दमें लड़े जाते हैं। इसके लिए भाई- भाई का दुश्मन हो जाता है। लेकिन इसके विपरीत शाया गांव की महिला ने लगभग 50 लाख जमीन शिरगुल देवता को सौंप दी है। चिंता देवी से जब इस बारे पूछा गया तो बताया कि पैंशन से गुजारा बड़े आराम से हो जाता है लेकिन वो भी दिन थे जब दो वक्त की रोटी से मोहताज हुआ करती थी।
बताया, एक दिन मैं इसी सोच में अपने मकान के बाहर बैठी थी कि आज का खाना कैसे बनेगा कि तभी नजर सामने विराजमान शिरगुल मंदिर पर पड़ी और मेरे मुंह से निकल पड़ा,‘‘देवा शिरगला एबे तू ही जाणे’’ यानी शिरगुल महाराज मेरी हालत का तुम्हें ही अंदाजा है।
कुछ देर बाद मैं यूं ही अपने खेत की ओर चल पड़ी तभी एक देवदार के पेड़ के नीचे छोटे पौधे जैसे़ दिखाई दिए। मैंने सुना तो था मगर कभी देख नहीं था कि गुच्छी इस प्रकार की होती है। मैं सारी गुच्छियां उठा कर घर ले आई और पति के घर आने पर बताया कि ये क्या है।
उन्होंने बताया कि ये गुच्छियां हैं। मैंने उनको कहा कि जाओ इसे बेच कर उसका आटा ले आओ। वे गये और बेच कर दो किलो आटा ले आए और हमारी दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो गया। दूसरे दिन से फिर मैं साथ लगते जंगलों में उन गुच्छियों को ढूंढने लगी और खाने का इंतजाम होने लगा मगर गुच्छी का सीजन समाप्त हो गया और फिर वही फाके के दिन आ गए। मैंने फिर शिरगुल महाराज को पुकारा। उसी रात मुझे सपना आया कि एक बुजुर्ग पल्ले में आटा ले कर आया और मुझे दे दिया।
दूसरे दिन से हमारे दिन बदलने लगे और किसी भी प्रकार की कमी महसूस नहीं हुई। हालांकि आज मैं अकेली हूं और काफी मुसीबत में पड़ सकती थी परन्तु शिरगुल महाराज ने मेरे गुजारे का प्रबंध पहले ही कर दिया था। उनकी ही कृपा रही कि मुझे पति के देहावसान के बाद सरकारी नौकरी मिल गई थी। अब मेरी जरूरतें आराम से पूरी हो रही हैं इसलिए शिरगुल महाराज के प्रताप से मिली जमीन को उनको ही अर्पण कर दी है।