हैवानियत की भेंट चढ़ी कोटखाई की गुडिय़ा धीरे-धीरे भुलाई जाने लगी है। सूरज लॉकअप मामले में कांस्टेबल से आईजी स्तर के अधिकारी नाप दिए गए। जमानत भी नहीं मिल रही, लेकिन यह सवाल जस का तस है कि आखिर गुडिय़ा को रेप के बाद मौत के घाट उतारने वाले कौन थे। मीडिया से भी गुडिय़ा को न्याय दिलाने की बात गायब हो चुकी है।
केवल पुलिस अधिकारियों को ही नापने का ट्रायल चल रहा है। कोई भी आज यह सवाल नहीं पूछ रहा कि चुनाव से पहले सडक़ों पर उतरकर गुडिया के लिए न्याय मांगने वाले आज कहां हैं। लाजमी तौर पर पिछली सरकार की चूलें इस घटना से हिली थी। मौजूदा सरकार को भी कार्यभार संभाले करीब दो महीने का समय गुजर चुका है। मासूम गुडिय़ा को न्याय कब और कैसे मिलेगा, कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। न्याय दिलाने के लिए पूरा प्रदेश सुलग उठा था।
जुलाई 2017 में गुडिया की अर्द्धनग्न लाश मिलने के बाद हर कोई बेटी को न्याय दिलाने के लिए भावुक हो उठा। अब जिस तरीके से गुडिय़ा को न्याय दिलाने की बात को भुलाया जा चुका है, अब यह प्रतीत होने लगा है कि कहीं न कहीं आंदोलन के दौरान राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही थी, जो सियासतदान उस समय सडक़ों पर थे, आज वो सत्ता में हैं। मौजूदा सरकार ने गुडिय़ा हेल्पलाइन शुरू कर पल्ला झाड़ लिया है, यानि सरकार की यही श्रद्धांजलि थी गुडिय़ा को।
सीबीआई को अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर वापस लौटे भी अरसा बीतने लगा है। सीबीआई के डीएसपी व एसपी स्तर के अधिकारियों को मीडिया में इस तरह से हीरो बना दिया गया था, जैसे चंद रोज में ही गुडिय़ा के गुनाहगारों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया जाएगा। जब तक सीबीआई डेरा डाले रही तो मीडिया भी खबर का पीछा करता रहा। अब केवल सूरज लॉकअप मामले को ही लपेटा जा रहा है। बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि गुडिय़ा को न्याय मिल जाए।