नाहन (एमबीएम न्यूज): फिनलैंड में पेसापॉलो वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता था। टीम इंडिया की कप्तान ट्रांसगिरि क्षेत्र के शमाह गांव की रहने वाली शालू शर्मा है। वर्ल्ड कप में बैस्ट प्लेयर घोषित हुई थी। इस कामयाबी के बावजूद शालू को अनदेखी के कारण आज भी अपने खेतों में घास काटना पड़ रहा है।
आप यह भी जानकर हैरान होंगे कि बर्तन धोकर परिवार का लालन-पोषण करते हैं। पिता ने बेटी का खेल में कैरियर बनाने के लिए जमा पूंजी तो दांव पर लगाई ही, साथ ही कर्जा भी लिया। शमाह में मामराज शर्मा व कुसुमलता के घर 5 जुलाई 1995 को जन्मी शालू बचपन में ही खेलों के प्रति आकर्षित हो गई थी। कई खेलों में अपनी काबलियत का लोहा मनवाया। जमा दो की कक्षा में ही हैंडबॉल में नेशनल खिलाड़ी बन गई।
परिवार की गुरबत के कारण शालू को जमा दो के बाद आगे की पढ़ाई प्राईवेट स्टुडेंट के तौर पर करनी पड़ी। सनद रहे कि पेसापॉलो की भारतीय टीम की कप्तान शालू शर्मा के पिता गांव के समीप तिलौरधार में एक होटल में बर्तन मांजने का कार्य करते हैं। जबकि भाई टैक्सी ड्राईवर है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने शालू की व्यथा से जुड़ा वीडियो शनिवार को अपलोड किया था। इसके बाद सोशल मीडिया समेत मीडिया संस्थानों में खासी हलचल पैदा हुई है।
शनिवार शाम विशेष बातचीत के दौरान शालू ने बताया कि परिवार के पास खेती की नाममात्र भूमि है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर परिवार को लगा था कि शायद दिन फिर जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ऐसे बनी टीम इंडिया की कप्तान…
कुछ अरसा पहले शालू को सूचना मिली कि बिलासपुर में महिला कबड्डी व पेसापॉलो के ट्रायल हो रहे हैं। परिवार की इतनी हिम्मत नहीं थी कि बेटी को अपने दम पर बिलासपुर तक ही आने जाने का खर्च देते। लिहाजा दोस्तों व करीबियों से धन जुटाकर शालू को बिलासपुर भेजा गया। चयन तो हो गया, लेकिन परिवार के सामने फिर चुनौती थी, क्योंकि स्टेट की टीम को केरल जाना था। खर्चा उठाने के लिए पिता ने कर्ज लिया। महज एक महीने बाद ही शालू का चयन भारतीय सीनियर टीम में हो गया।